आदाब, नमस्ते, सत श्री अकाल, क्या हाल है?
धुप
से परेशान हो या देश के प्रधानमंत्री की चिंता सताए जा रही है. ट्रेन का
शोर.....काम का प्रेशर, या फिर वही बच्चे, सास-ससुर की देखभाल; बढ़ते
दाम......पानी की किल्लत; इक नहीं, दो नहीं, बस सवाल ही सवाल! तोहार सवाल
दा जबाब नहीं!
आप सोच रहें
होंगे की ये कौन बंदा है जो खामखाँ खिचखिच किये जा रहा है. दोस्तों, आपकी
याद-दास्त शायद जबाब दे रही है. चलो युही समझ लो की आपकाही अपना, न पराया
कोई.....आप सबसे, न केवल इससे ना उससे... न किसी कथा का नायक हु न खलनायक!
न नामी-गिरामी, न शोहरत न कोई माहरत! उसी तरह पधारे, जैसे आप, न
बेन्ड्बाजा, न कोई जश्न, वहीi कराहती खटिया, मानो अपने पधारने पर निषेध
दर्ज कराती; वही अन्जान गली, कूचा,
क्या
पहचाना या नहीं! मैं वही हु जो चंद पैसे बचाने के लिए आधा दर्जन राशन
दुकानों की धुल छान मारता हु, लोकल में चौथी सिट मिलाने पर स्वयं को
खुशनसीब समझता हो, भीड़ में खुद को बचाते, किसी तरह से जीवन-सफ़र तय करने
वाला आम आदमी; वो जो किसी ठेले की चाय अमृत समझकर पिता हो, रस्ते के नल पर
प्यास बुझाता हो ....... कही झगडा-फसाद हो तो यहाँ हमारे हाथ-पैर पड जाते
ठन्डे!
फिरभी
यारा, नाम पूछ रहे हो, की गल है? वैसे तो मेरा न कोई नाम, न कोई चेहरा, आप
के बिना अधुरा, आप हो तो पूरा! आप साथ हो तो बात बन जाय, सफ़र सुहाना बन
जाय, जिंदगी खुशनुमा बन जाय. जिंदगी मानो ट्रेन में विंडो सिट पर बैठे सफ़र
का सपना, या तो सफ़र के शुरू होते ही पूरा हो जाय या फिर सफ़र ख़त्म होते
होते. हमारी जरूरते, पसंद-नापसंद, कर्तव्य-जिम्मेदारिया, सपने-पूर्ति, आदि
में वाकई सारा जीवन बीत जाता है. क्या ये आपकी अपनी कहानी मालुम होती है?
ओह! क्या करे.
मिलेंगे अगले अंक में
विजया यादव
पुढील भागांची आतुरतेने वाट पाहत आहोत.
ReplyDeleteअनामिक के सफर में हम भी हमसफर होने के लिये तैयार बैठे है.
अभिनंदन!
ReplyDeleteमी पुढील भागांची वाट पाहत होतो. परंतु अजून काही लिहील गेलं नाही. पुढे लिहा आम्ही नक्कीच वाचू.
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