का-अत र-क्या करुं ब- 2122 x 3 + 212.
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लूट सारे ले गये वो अब शिकायत क्या करुं
बंदगी लेकर भला मैं अब बगावत क्या करुं I
राजकाजी बन चले हैं आज सारे चोर ही
साथ उनका देने' की मैं भी हिमाकत क्या करुं I
रह गया है दूर देखो पासबाने मुल्क भी
साथ उन के देश को लुटने की जुर्रत क्या करुं I
बदनसीबी हैं हमारी गैर के हाथों गये
हुक्मरानों की बदलती है नियामत क्या करुं I
चाहतों या ख्वाहिशों की बात कोई क्या करे
तीरगी में साथ लेके ये कयामत क्या करुI
- प्रकाश पटवर्धन,
विश्रांतवाडी, पुणे.
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