Comments

अभिव्यक्ती इंडिया या संकेत स्थळावर आपले सहर्ष स्वागत.

Friday, January 22, 2016

0 स्मरता जरा सुखाला, हे काय हो जहाले



स्मरता जरा सुखाला, हे काय हो जहाले
बाजार हे व्यथांचे, वरतीच काय गेले I
समजून घे खरे हे, दुःखात सुख आहे
या मानवी जगाचा, तोची सखाच आहे I
त्या मागण्याच साठी, सारेच एक झाले
ते कारखानदारां, वाईट मात्र झाले I
देऊ नको फुकाचे, घे काम, घाम गाळी
छातीवरीच कोणी, नेवू शके न बाळी I
कोणी कशास गाळी, दो बुंद आसवांचे
माझे मलाच थोडे, ऐकू कुणा कुणाचे I
ठेवू नका भरवसा, कोणी नसे कुणाचे 
स्वार्थात मग्न सारे, मागेच ते धनाचे I
सोडून शेत जागा, धांवू नकोस मागे
टोप्या खुणावती रे, संकेत ते भ्रमाचे I
टोप्याही लोकशाही, रंगात रंगलेल्या 
भांगेपरी नशेच्या, धुंदीत धुंदलेल्या I 
कैवार फार झाला, गजेंन्द्र ठार गेला 
'अरविंद' काय सांगु, 'विश्वास'घात झाला I
सुतक कुणास नाही, जो तो हिरीरी ने
दोषारोपी करती, तरीही क्रमाक्रमाने I
          -  प्रकाश पटवर्धन  

0 महकते है किताबों में अभी तक खत पुराने से

- आने :          
र  -  से
ब  -  1222  1222   1222   1222.

महकते है किताबों में अभी तक खत पुराने से  
नई दुनिया बसाने के करिश्में भी सुहाने से I
*
चिरागों को जलाए रख सदा तू बुझ नहीं पाये 
यहाँ कब तीरगी से बच सका कोई जमाने से I 
*
गुजर जाएं हजारों मुश्किलों से हम तो' क्या कहने
हमारा नाम आयेगा मुहब्बत के तराने से I
रजामंदी सहारा है हमारा जी मुहब्बत में  
बताओ ना भला वो बाज आये क्यों जमाने से I 
*
मनाना ही फसाना है जरा सोचो मुहब्बत में 
न हम मनते,  न हम फसते, पुराने जेलखाने से I

               -    प्रकाश पटवर्धन, 
4/  

0 लूट सारे ले गये वो अब शिकायत क्या करुं

का-अत  र-क्या करुं   ब- 2122 x 3 + 212.
*
लूट सारे ले गये वो अब शिकायत क्या करुं 
बंदगी लेकर भला मैं अब बगावत क्या करुं I 

राजकाजी बन चले हैं आज सारे चोर ही
साथ उनका देने' की मैं भी हिमाकत क्या करुं I 

रह गया है दूर देखो पासबाने मुल्क भी  
साथ उन के देश को लुटने की जुर्रत क्या करुं I

बदनसीबी हैं हमारी गैर के हाथों गये
हुक्मरानों की बदलती है नियामत क्या करुं I 

चाहतों या ख्वाहिशों की बात कोई क्या करे
तीरगी में साथ लेके ये कयामत क्या करुI

            -    प्रकाश पटवर्धन,
                 विश्रांतवाडी, पुणे.  

0 नया युग हम बनाना चाहते है

का - आना;   र - चाहते है  
बहर -1222 1222   122
**
नया युग हम बनाना चाहते है  
पुराने को भुनाना चाहते है I
*
सभी को साथ लाना चाहते है
नई दुनिया सजाना चाहते है I  
*
कठिन राहे अगर मंझिल तलक हो
वहीं पे आशियाना चाहते है I  
*
चलो अब आजमाये खुदी को   
दिवाने दिल जलाना चाहते है I 
*
धरा सुजला सुहानी हो तभी तो
पुरी ताकद लगाना चाहते है I 

    -    प्रकाश पटवर्धन,